ओबीसी के 30 अभ्यर्थियों को 2017 में सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बावजूद उन्हें क्रीमीलेयर श्रेणी में पाए जाने के बाद नियुक्ति नहीं दी गई है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ओबीसी के 36 अभ्यर्थी खुद के क्रीमीलेयर श्रेणी से बाहर होने और आरक्षण के हकदार होने संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके थे। हालांकि, इनमें से ६ ने मेरिट सूची में दावा कर नियुक्ति ले ली। बताया जा रहा है कि ये अभ्यर्थी अब कोर्ट पहुंचे हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के 1990 के फैसले पर केंद्र के निर्देश के अनुसार ओबीसी अभ्यर्थी अगर क्रीमीलेयर में आते हैं तो वे ओबीसी कोटा के आरक्षण के हकदार नहीं हैं। दरअसल, ओबीसी वर्ग के लिए जातिगत आरक्षण का लाभ उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर लागू होता है, जबकि एससी/एसटी के मामले में सभी को जाति के अनुसार आरक्षण मिलता है। हालांकि, सरकार समय-समय पर क्रीमीलेयर श्रेणीके दायरे में बदलाव करती रही है। 2017 में यह दायरा 6 लाख सालाना आय से बढ़ाकर 8 लाख किया था।
3 साल पहले तक सभी को मिलती थी नियुक्ति
केंद्र सरकार के एक उच्चाधिकारी के अनुसार कार्मिक विभाग ने तीन साल पहले ही सिविल सर्विस परीक्षा पास करने वाले ओबीसी अभ्यर्थियों के क्रीमीलेयर में होने की जांच करना शुरू की है। इससे पहले कभी क्रीमीलेयर श्रेणी में होने की जांच नहीं की गई है। इसलिए किसी भी ओबीसी अभ्यर्थियों की नियुक्ति नहीं रोकी गई। अधिकारी का कहना है कि ऐसा संभव है कि पहले आरक्षण के असली हकदार के बजाय कई क्रीमीलेयर में शामिल अभ्यर्थी उच्च पदों पर नियुक्ति पाने में कामयाब रहे हों।
महिलाओं को सेना में 5 प्रतिशत प्रतिनिधित्व
सेना में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5 फीसदी तक पहुंचाने के लक्ष्य पर केंद्र सरकार काम कर रही है। यह जानकारी केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में दी। CISF और CRPF में 15 फीसदी जबकि BSF, SSB और ITBP में 5 फीसदी महिलाओं के प्रतिनिधित्व का लक्ष्य है।
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