हाल ही में हुए एक नए शोध से पता चला है कि 53 फीसदी भारतीय फर्म में काम करने वाले कर्मचारियों का अनुपात प्रति 10 पुरुष कर्मचारियों पर 1 महिला कर्मचारी है। यानि देश में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को आज भी काम पाने के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है। corporate responsibility watch or कॉरपोरेट रिस्पॉन्सिबिलिटी वॉच (सीआरडब्ल्यू) की ओर से संचालित इस सर्वे में यह खुलासा हुआ कि देश की अधिकतर कंपनियों में लिंगानुपात की खाई बहुत गहरी है। इतना ही नहीं सर्वेक्षण में यह भी उल्लेख किया गया है कि देश की शीर्ष कंपनियों के 70 प्रतिशत कर्मचारियों में दिव्यांग कर्मचारियों का प्रतिशत भी 0से 1 फीसदी से भी कम है। यानि दिव्यांगों को भी नौकरी में बहुत ज्यादा अवसर नहीं मिलते।
300 कंपनियों का सर्वे
सीआरडब्ल्यू 14 सिविल सोसाइटी संगठनों के साथ भारत का एक थिंक टैंक है। यह सिविल सोसायटी पर्सपेक्टिव के दृष्टिकोण से भारत के कॉर्पोरेट वातावरण का विश्लेषण करता है। इसने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में लिस्टेड भारत की 500 शीर्ष कंपनियों में से 300 का डेटा एकत्र कर उनके कर्मचारियों का विश्लेषण किया। अध्ययन में कहा गया है कि विश्लेषण के तहत 300 कंपनियों में से केवल 39 ने 'लगातार' कंपनी में अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को रोजगार देने की बात की। जबकि अन्य शीर्ष कंपनियों ने दिव्यांगों और महिला कर्मचारियों के खिलाफ अपने पूर्वाग्रह से चौंका दिया।
88 फीसदी भारतीय महिलाएं नहीं लौटती काम पर
काम के लिए फ्लेक्सीबल टाइम की मांग पर भी गौर करना होगा। क्योंकि इसके अभाव में 88 फीसदी भारतीय महिलाओं ने मातृत्व अवकाश के बाद पूर्णकालिक काम पर वापसी ही नहीं की। जबकि इस दौरान केवल 12फीसदी कंपनियों ने उन्हें फ्लेक्सिबल समय और मातृत्व अवकाश जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवाईं। इस प्रकार यह सर्वेक्षण हमें यह विचारने पर विवश करता है कि देश की आधी आबादी जो अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे सकती है उसे घर बिठाने पर हम क्यों आमादा हैं?
बीएसई में लिस्टेड इन शीर्ष भारतीय कंपनियों में से 53 प्रतिशत में प्रत्येक 10 पुरुष कर्मचारियों पर सिर्फ 1 महिला कर्मचारी काम कर रही थी। वहीं 70 फीसदी कंपनियों में 1 फीसदी से भी कम दिव्यांग कर्मचारी कार्यरत थे। 300 कंपनियों में से केवल 39 फीसदी कंपनियों ने ही अपने यहां पिछड़ा वर्ग या आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों को रोजगार देने की बात स्वीकारी। इसके अलावाए अध्ययन में यह भी दावा किया गया कि 23,247.90 करोड़ की निर्धारित कॉर्पोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) राशि में से भी कंपनियों ने केवल केवल 57 प्रतिशत राशि ही खर्च की थी। भारत में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महिलाओं की रोजगार दर को बढ़ाने की जरुरत है। लेकिन औपचारिक और अनौपचारिक रूप से यह दर 2005 में 35 फीसदी की तुलना में गिरकर अब केवल 26 फीसदी रह गई है।
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